मेरे दादा ने एक तोता पाल रखा था।
हमेशा में उससे मिलने जाती और दाना देते वक्त एक ही सवाल पूछती कि " क्या तुम ख़ुश हो ?"
उस पिंजरे मे बैठकर वो सब पक्षियों को उड़ता हुआ देखता था।
बहुत बार मन किया कि आज़ाद करदू उसे पर में कभी कर न पाई।
कुछ सालों बाद वो हमें छोड़कर चला गया
जितना दुःख उसे पिंजरे में कैद होने का था , उतना ही दादा को उसके जाने का
शायद वो यह सोचती थी,
मैं वो पक्षी बनना चाहती थी,जिसे पूरी छूट होती कही भी घूमने की
जो आसमानों कि उचाईयो को नापते हुए विचरण करती रहती।
मैं वो पक्षी बनना चाहती थी जो, खुले आसमान में बादलों को पार करते हुए चाँद (मेहताब) तक पहुँच सकती थी।
जिसे देखकर लोगो को खुशी मिलती थी।
वो पक्षी जो जंगल मे बिना किसी चिंता के नाचतीं है।
वो पक्षी जिसके एक पंख को लोग घर मे रखना शुभ मानते है।
वो पक्षी जो बिना gps के बेफिक्र उड़ती है।
वो पक्षी जो हमेशा खुश रहती थी।
मैं वो पक्षी बनना चाहती थी।
ये दुनिया एक पिंजरे के समान है, न ही हम अपनी परेशानियों से भाग सकते है, ओर नाही हम सब छोड़कर जा सकते है।
Nice Abhaya....
ReplyDeleteJust to add,
काश हम भी कोई आजाद पंछी होते
इंसानों के बीच यूं तो ना धोखे खाते
उड़ते दर यहां दर वहां पर भटकते नहीं
मंजिल की परवाह किए बगैर यूं तड़पते नहीं